सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च ।
मूध्न्र्याधायात्मन: प्राणमास्थितो योगधारणाम् ॥ १२ ॥
अनुवाद
समस्त इंद्रिय क्रियाओं से विरक्ति योग की स्थिति कहलाती है। सभी इंद्रियों के द्वार बंद करके और मन को हृदय में तथा प्राणवायु को सिर पर केंद्रित करके व्यक्ति योग में स्थित हो जाता है।