श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 8: भगवत्प्राप्ति  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  8.10 
 
 
प्रयाणकाले मनसाचलेन
भक्त्य‍ा युक्तो योगबलेन चैव ।
भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्य-
क्स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  मृत्यु के समय प्राण को भृकुटि के मध्य स्थिर कर और योग की शक्ति से अपने चित को अचल करके पूर्ण भक्ति से परमात्मा के स्मरण में लीन हुआ व्यक्ति निश्चय ही भगवान को प्राप्त हो जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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