वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भगवद्-गीता
»
अध्याय 7: भगवद्ज्ञान
»
श्लोक 8
श्लोक
7.8
रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययो: ।
प्रणव: सर्ववेदेषु शब्द: खे पौरुषं नृषु ॥ ८ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
हे कुन्तीपुत्र! जल में जो स्वाद है, सूर्य और चंद्रमा का प्रकाश है, वेदों में जो ओंकार है, आकाश में जो ध्वनि है और मनुष्य में जो सामर्थ्य है, मैं वही हूँ।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.