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श्रीमद् भगवद्-गीता
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अध्याय 7: भगवद्ज्ञान
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श्लोक 4
श्लोक
7.4
भूमिरापोऽनलो वायु: खं मनो बुद्धिरेव च ।
अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥ ४ ॥
अनुवाद
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पृथ्वी, पानी, अग्नि, हवा, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार - ये आठों मिलकर मेरी अलग भौतिक शक्तियां बनाते हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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