श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 7: भगवद्ज्ञान  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  7.17 
 
 
तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते ।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रिय: ॥ १७ ॥
 
अनुवाद
 
  इन सभी में से परमज्ञान वाला और शुद्ध भक्ति में निरत व्यक्ति सर्वोत्तम है क्योंकि मैं उसे अत्यंत प्रिय हूँ और वह मुझे प्रिय है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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