चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन ।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥ १६ ॥
अनुवाद
हे श्रेष्ठ भरतवंशी! चार प्रकार के पुण्यात्मा लोग मेरी सेवा में लग जाते हैं - संकटग्रस्त, धन की इच्छा रखने वाला, जिज्ञासु और जो पूर्ण सत्य का ज्ञान चाहता है।