श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 7: भगवद्ज्ञान  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  7.1 
 
 
श्रीभगवानुवाच
मय्यासक्तमना: पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रय: ।
असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री भगवान् ने कहा—हे पृथापुत्र ! अब सुनो कि मेरी भावना से पूर्ण होकर और मन को मुझमें आसक्त करके योगाभ्यास करते हुए तुम किस तरह मुझे पूर्णतया संशयरहित रूप से जान सकते हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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