श्रीभगवानुवाच
पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते ।
न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति ॥ ४० ॥
अनुवाद
ईश्वर ने कहा- हे पृथापुत्र! शुभ कर्मों में लीन योगी का इस लोक में भी नाश नहीं होता और न ही परलोक में ही। हे मित्र! अच्छे कर्म करने वाला कभी बुराई से परास्त नहीं होता।