श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 6: ध्यानयोग » श्लोक 26 |
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| | श्लोक 6.26  | |  | | यतो यतो निश्चलति मनश्चञ्चलमस्थिरम् ।
ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत् ॥ २६ ॥ | | अनुवाद | | मन की चंचलता और अस्थिरता के कारण जहाँ कहीं भी उसकी भटकन हो, वहाँ से मनुष्य को उसे खींचकर अपने नियंत्रण में लाना चाहिए। | |
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