स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा ।
सङ्कल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषत: ।
मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्तत: ॥ २४ ॥
अनुवाद
मनुष्य को चाहिए कि दृढ़ इच्छाशक्ति और आस्था के साथ योगाभ्यास में लगा रहे और साधना पथ से डिगे नहीं। उसे मानसिक अटकलों से उत्पन्न होने वाली समस्त भौतिक इच्छाओं का पूर्णतः त्याग कर देना चाहिए और इस प्रकार अपने मन के द्वारा सभी इंद्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए।