श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 5: कर्मयोग  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  5.29 
 
 
भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् ।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥ २९ ॥
 
अनुवाद
 
  मुझे संपूर्ण यज्ञों और तपस्याओं का परम लाभार्थी, समस्त दुनिया और देवताओं का सर्वोच्च स्वामी और सभी जीवित प्राणियों का हितैषी और शुभचिंतक मानकर मेरी भक्ति रस में तल्लीन व्यक्ति भौतिक कष्टों से शांति प्राप्त करता है।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भगवद्-गीता के अंतर्गत पाँचवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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