श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 5: कर्मयोग  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  5.24 
 
 
योऽन्त:सुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव य: ।
स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ॥ २४ ॥
 
अनुवाद
 
  वह व्यक्ति जो अपने अंतर में सुख पाता है, जो कर्मठ है और अपनी आंतरिक दुनिया में ही रमता है, और जिसका लक्ष्य अंतर्मुखी है, वह वास्तव में पूर्ण योगी है। वह परब्रह्म में मोक्ष प्राप्त करता है और अंततः ब्रह्म को प्राप्त होता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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