शक्नोतीहैव य: सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् ।
कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्त: स सुखी नर: ॥ २३ ॥
अनुवाद
इस शरीर को त्यागने से पहले, यदि कोई व्यक्ति भौतिक इंद्रियों के आग्रहों को सहन करने और इच्छा और क्रोध की शक्ति को नियंत्रित करने में सक्षम है, तो वह अच्छी तरह से स्थित है और इस दुनिया में खुश है।