श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 4: दिव्य ज्ञान » श्लोक 8 |
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| | श्लोक 4.8  | |  | | परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थानार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ ८ ॥ | | अनुवाद | | अपने भक्तों के उद्धार, दुष्टों का संहार और धर्म की फिर से स्थापना हेतु मैं कल्प-कल्प में अवतार लेता हूँ। | |
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