श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 4: दिव्य ज्ञान » श्लोक 7 |
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| | श्लोक 4.7  | |  | | यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ ७ ॥ | | अनुवाद | | हे भरतवंशी! जब भी और जहाँ भी धर्म का ह्रास होता है और अधर्म का बोलबाला होता है, उस समय मैं अपना अवतार लेता हूँ। | |
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