वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भगवद्-गीता
»
अध्याय 4: दिव्य ज्ञान
»
श्लोक 35
श्लोक
4.35
यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव ।
येन भूतान्यशेषाणि द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि ॥ ३५ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
स्वरूपसिद्ध पुरुष से सच्चा ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद तुम फिर कभी ऐसे भ्रम में नहीं पड़ोगे क्योंकि इस ज्ञान से तुम यह देख पाओगे कि सभी प्राणी परमात्मा के अंश हैं अर्थात् वे सब मेरे ही हैं।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.