श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 4: दिव्य ज्ञान  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  4.24 
 
 
ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्न‍ौ ब्रह्मणा हुतम् ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना ॥ २४ ॥
 
अनुवाद
 
  जो व्यक्ति कृष्णभावनामृत में पूर्णतया लीन रहता है, उसे अपने आध्यात्मिक कार्यों के योगदान के कारण ही आध्यात्मिक राज्य की प्राप्ति होती है। उसका संपूर्ण कर्म आध्यात्मिक है और वह आध्यात्मिक ही अर्पित करता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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