श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 4: दिव्य ज्ञान  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  4.21 
 
 
निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रहः ।
शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्‍नोति किल्बिषम् ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  ऐसा ज्ञानी पुरुष संयमित मन और बुद्धि से काम करता है, अपनी सारी संपत्ति के स्वामित्व को छोड़ देता है और केवल जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं के लिए कर्म करता है। इस तरह काम करते हुए पापों की प्रतिक्रिया से उस पर कोई असर नहीं पड़ता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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