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श्रीमद् भगवद्-गीता
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अध्याय 4: दिव्य ज्ञान
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श्लोक 19
श्लोक
4.19
यस्य सर्वे समारम्भाः कामसंकल्पवर्जिताः ।
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पण्डितं बुधाः ॥ १९ ॥
अनुवाद
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जिसकी प्रत्येक चेष्टा इन्द्रिय तृप्ति की कामना से रहित होती है, उसे पूर्ण ज्ञानी माना जाता है। साधु पुरुष उसे ही ऐसा कर्ता कहते हैं जिसने पूर्ण ज्ञान की अग्नि से कर्म के फल को जला डाला है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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