श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 4: दिव्य ज्ञान » श्लोक 17 |
|
| | श्लोक 4.17  | |  | | कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः ।
अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः ॥ १७ ॥ | | अनुवाद | | कर्म की सूक्ष्मता को समझना बहुत मुश्किल है। इसलिए मनुष्य को यह ठीक से जानना चाहिए कि कर्म क्या है, पाप कर्म क्या है और अकर्म क्या है। | |
| |
|
|