श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 4: दिव्य ज्ञान  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  4.13 
 
 
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः ।
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम् ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  प्रकृति के तीनों गुणों और उनके अनुसार किये जाने वाले कार्यों के आधार पर मैंने ही मानव समाज के चार वर्गों की रचना की है। यद्यपि मैं इस व्यवस्था का निर्माता हूँ, किन्तु तुम यह जान लो कि मैं इसके साथ ही अकर्ता और अव्यय भी हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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