श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 16: दैवी तथा आसुरी स्वभाव » श्लोक 5 |
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| | श्लोक 16.5  | |  | | दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता ।
मा शुच: सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव ॥ ५ ॥ | | अनुवाद | | दिव्य गुण मोक्ष की ओर ले जाते हैं, परंतु आसुरी गुण बंधन में डालते हैं। हे पाण्डुपुत्र! तुम चिन्ता मत करो, क्योंकि तुम दैवीय गुणों से युक्त हो। | |
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