वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भगवद्-गीता
»
अध्याय 16: दैवी तथा आसुरी स्वभाव
»
श्लोक 20
श्लोक
16.20
आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि ।
मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम् ॥ २० ॥
अनुवाद
play_arrowpause
हे कुन्तीपुत्र! ऐसे प्राणी दैत्य जीवन की योनियों में बार-बार जन्म लेते हुए मुझ तक कभी नहीं पहुँच पाते हैं। धीरे-धीरे वे नितांत अधम गति को प्राप्त हो जाते हैं।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.