श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 16: दैवी तथा आसुरी स्वभाव  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  16.20 
 
 
आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि ।
मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम् ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  हे कुन्तीपुत्र! ऐसे प्राणी दैत्य जीवन की योनियों में बार-बार जन्म लेते हुए मुझ तक कभी नहीं पहुँच पाते हैं। धीरे-धीरे वे नितांत अधम गति को प्राप्त हो जाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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