श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 16: दैवी तथा आसुरी स्वभाव  »  श्लोक 11-12
 
 
श्लोक  16.11-12 
 
 
चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिता: ।
कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चिता: ॥ ११ ॥
आशापाशशतैर्बद्धा: कामक्रोधपरायणा: ।
ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्चयान् ॥ १२ ॥
 
अनुवाद
 
  वे मानते हैं कि इंद्रियों को खुश रखना ही मानव सभ्यता की पहली आवश्यकता है। इसलिए, जीवन के अंत तक उन्हें बेशुमार चिंताएँ बनी रहती हैं। लाखों इच्छाओं की जाल में बंधकर और काम-क्रोध में लीन होकर, वे अपनी इंद्रियों की तृप्ति के लिए अवैध तरीकों से धन इकट्ठा करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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