श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 15: पुरुषोत्तम योग  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  15.5 
 
 
निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा
अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामा: ।
द्वन्द्वैर्विमुक्ता: सुखदु:खसंज्ञै-
र्गच्छन्त्यमूढा: पदमव्ययं तत् ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  जो मिथ्या प्रतिष्ठा, मोह और कुसंगति से मुक्त हैं, जो शाश्वत तत्त्व को समझते हैं, जिन्होंने भौतिक वासना को नष्ट कर दिया है, जो सुख और दुख के द्वंद्व से मुक्त हैं और जो भ्रम से रहित हैं, वे उस शाश्वत राज्य को प्राप्त होते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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