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श्रीमद् भगवद्-गीता
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अध्याय 15: पुरुषोत्तम योग
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श्लोक 14
श्लोक
15.14
अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रित: ।
प्राणापानसमायुक्त: पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ॥ १४ ॥
अनुवाद
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मैं समस्त जीवों के शरीर में पाचनशक्ति (वैश्वानर अग्नि) है और मैं बाहर जाने वाली और अंदर आने वाली वायु (प्राण वायु) में रह कर चार प्रकार के भोजन को पचाता हूँ।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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