श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 15: पुरुषोत्तम योग  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  15.11 
 
 
यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम् ।
यतन्तोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यन्त्यचेतस: ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  आत्म-साक्षात्कार प्राप्त योगी इस सबको स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। किंतु जिनके मन अविकसित हैं और जो आत्म-साक्षात्कार को प्राप्त नहीं हैं, वे प्रयत्न करके भी यह नहीं देख पाते कि क्या हो रहा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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