तत्क्षेत्रं यच्च यादृक्च यद्विकारि यतश्च यत् ।
स च यो यत्प्रभावश्च तत्समासेन मे शृणु ॥ ४ ॥
अनुवाद
अब मेरी ओर से इस कर्मक्षेत्र को संक्षेप में सुनो कि यह क्या है, किस प्रकार बना है, इसमें क्या परिवर्तन हुए हैं, यह कहाँ से उत्पन्न हुआ है, इसे जानने वाला कौन है और उसके क्या प्रभाव हैं।