यथा प्रकाशयत्येक: कृत्स्नं लोकमिमं रवि: ।
क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत ॥ ३४ ॥
अनुवाद
हे भरतपुत्र! जिस प्रकार एक सूर्य ही इस सारे ब्रह्माण्ड को रोशन करता है, उसी प्रकार शरीर के अंदर स्थित एक आत्मा ही चेतना के द्वारा पूरे शरीर को प्रकाशित करती है।