अनादित्वान्निर्गुणत्वात्परमात्मायमव्यय: ।
शरीरस्थोऽपि कौन्तेय न करोति न लिप्यते ॥ ३२ ॥
अनुवाद
शाश्वत दृष्टिकोण से देखनेवाले समझ सकते हैं कि अदृश्य आत्मा पारलौकिक, शाश्वत है और प्रकृति के नियमों से परे है। हे अर्जुन! भौतिक शरीर के संपर्क में होने के बावजूद, आत्मा न तो कोई कार्य करती है और न ही उलझती है।