प्रकृत्यैव च कर्माणि क्रियमाणानि सर्वश: ।
य: पश्यति तथात्मानमकर्तारं स पश्यति ॥ ३० ॥
अनुवाद
जो व्यक्ति यह देखता है कि संपूर्ण कार्य शरीर द्वारा संपन्न किए जाते हैं, जिसकी उत्पत्ति प्रकृति से हुई है और वह यह देखता है कि आत्मा कुछ भी नहीं करती, वही वास्तव में देखता है।