समं पश्यन्हि सर्वत्र समवस्थितमीश्वरम् ।
न हिनस्त्यात्मनात्मानं ततो याति परां गतिम् ॥ २९ ॥
अनुवाद
वह जो परमात्मा को सर्वत्र और सभी जीवों में समान रूप से स्थित देखता है, वह अपने मन से स्वयं को नीचा नहीं करता। इस प्रकार, वह दिव्य गंतव्य को प्राप्त करता है।