यावत्सञ्जायते किञ्चित्सत्त्वं स्थावरजङ्गमम् ।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात्तद्विद्धि भरतर्षभ ॥ २७ ॥
अनुवाद
हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ! यह जान लो कि जो कुछ भी तुम संसार में देखते हो, चाहे वह चलती-फिरती चीजे हों या स्थिर चीजे, वे सब कर्मक्षेत्र और कर्मक्षेत्र के ज्ञाता के संयोजन से ही बनी हैं।