श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 13: प्रकृति, पुरुष तथा चेतना  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  13.27 
 
 
यावत्सञ्जायते किञ्चित्सत्त्वं स्थावरजङ्गमम् ।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात्तद्विद्धि भरतर्षभ ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ! यह जान लो कि जो कुछ भी तुम संसार में देखते हो, चाहे वह चलती-फिरती चीजे हों या स्थिर चीजे, वे सब कर्मक्षेत्र और कर्मक्षेत्र के ज्ञाता के संयोजन से ही बनी हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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