श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 12: भक्तियोग  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  12.5 
 
 
क्ल‍ेशोऽधिकतरस्तेषामव्यक्तासक्तचेतसाम् ।
अव्यक्ता हि गतिर्दु:खं देहवद्भ‍िरवाप्यते ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  जिन लोगों का मन परमात्मा के अव्यक्त, निराकार स्वरूप के प्रति आसक्त है, उनके लिए प्रगति करना बहुत कष्टप्रद है। देहधारियों के लिए उस क्षेत्र में प्रगति करना हमेशा कठिन होता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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