अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव ।
मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन्सिद्धिमवाप्स्यसि ॥ १० ॥
अनुवाद
यदि तुम भक्ति-योग के नियमों और विधियों का पालन नहीं कर सकते, तो कम से कम मेरे लिए कर्म करो, क्योंकि मेरे लिए कर्म करने से तुम पूर्णता (सिद्धि) प्राप्त करोगे।