श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 11: विराट रूप  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  11.8 
 
 
न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा ।
दिव्यं ददामि ते चक्षु: पश्य मे योगमैश्वरम् ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  परंतु तुम मुझे अपनी वर्तमान आँखों से नहीं देख सकते। इसीलिए मैं तुम्हें दिव्य आंखें दे रहा हूँ। अब मेरे दिव्य वैभव को देखो!
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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