श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 11: विराट रूप  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  11.7 
 
 
इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् ।
मम देहे गुडाकेश यच्च‍ान्यद्‍द्रष्टुमिच्छसि ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  हे अर्जुन! तुमको जो कुछ भी देखना हो, वह सब एक साथ मेरे इस शरीर में देख लो। यह विश्वरूप तुम्हें वह सब दिखा सकता है, जो तुम अभी देखना चाहते हो और जो कुछ भी तुम भविष्य में देखना चाहोगे। यहाँ गतिशील और स्थिर सब कुछ एक ही स्थान पर है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.