श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 11: विराट रूप  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  11.6 
 
 
पश्यादित्यान्वसून्‍रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा ।
बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  हे भारत! लो, तुम आदित्यों, वसुओं, रुद्रों, अश्विनीकुमारों तथा अन्य देवों के विभिन्न स्वरूपों को यहाँ देखो। तुम वे अनेक आश्चर्यजनक रूपों को देखो, जिन्हें पहले कभी किसी ने न तो देखा है, न सुना है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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