मेरे प्रिय अर्जुन! वो व्यक्ति जो मेरे शुद्ध भक्ति मार्ग पर अग्रसर रहता है, जो कर्मों तथा मन के दोषों से मुक्त है, जो मेरे लिए कर्म करता है, जो मुझे ही अपने जीवन का लक्ष्य मानता है और जो सभी जीवों के प्रति मित्रता का भाव रखता है, वह निश्चित ही मेरे पास पहुँचता है।
इस प्रकार श्रीमद् भगवद्-गीता के अंतर्गत ग्यारहवाँ अध्याय समाप्त होता है ।