मा ते व्यथा मा च विमूढभावो
दृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्ममेदम् ।
व्यपेतभी: प्रीतमना: पुनस्त्वं
तदेव मे रूपमिदं प्रपश्य ॥ ४९ ॥
अनुवाद
तुम मेरे इस भयावह स्वरूप को देखकर अत्यधिक विचलित और मोहित हो गए हो। अब इसे समाप्त करता हूँ। मेरे भक्त! तुम सभी चिंताओं से फिर से मुक्त हो जाओ। तुम शांत मन से अब अपना वांछित स्वरूप देख सकते हो।