अमी हि त्वां सुरसङ्घा विशन्ति
केचिद्भीता: प्राञ्जलयो गृणन्ति ।
स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसङ्घा:
स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभि: पुष्कलाभि: ॥ २१ ॥
अनुवाद
देवगणों का समूह आपकी शरण में आ रहा है और आपके भीतर समा रहा है। उनमें से कुछ बहुत डरे हुए हैं, हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहे हैं। महान ऋषि और सिद्धगण "कल्याण हो!" कहते हुए वेद मंत्रों का उच्चारण कर आपकी स्तुति कर रहे हैं।