श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 11: विराट रूप » श्लोक 12 |
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| | श्लोक 11.12  | |  | | दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता ।
यदि भा: सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मन: ॥ १२ ॥ | | अनुवाद | | यदि आकाश में सैंकड़ों हजारों सूर्य एकाएक उदित हो जाएँ, तब भी उनका प्रकाश परमपुरुष के इस विश्वरूप के तेज की दिव्यता के समक्ष शायद ही टिक पाए। | |
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