अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम् ।
अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम् ॥ १० ॥
दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् ।
सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम् ॥ ११ ॥
अनुवाद
अर्जुन ने उस विश्वरूप में अनगिनत मुँह, अनगिनत आँखें और अनगिनत अद्भुत दृश्य देखे। वह रूप अनेक दिव्य आभूषणों से सजा हुआ था और अनेक दिव्य हथियार धारण किए हुए था। उसने दिव्य मालाएँ और वस्त्र पहने थे, और उसके शरीर पर अनेक दिव्य सुगंधें लगी हुई थीं। सब कुछ अद्भुत, तेजस्वी, असीम और सर्वव्यापी था।