श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 10: श्रीभगवान् का ऐश्वर्य » श्लोक 36 |
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| | श्लोक 10.36  | |  | | द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् ।
जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्त्वं सत्त्ववतामहम् ॥ ३६ ॥ | | अनुवाद | | मैं धोखेबाजों का जुआ हूँ और तेजस्वियों में तेज हूँ, मैं विजय हूँ, साहस हूँ, और मैं बलवानों की ताकत हूँ। | |
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