श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 10: श्रीभगवान् का ऐश्वर्य » श्लोक 33 |
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| | श्लोक 10.33  | |  | | अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्व: सामासिकस्य च ।
अहमेवाक्षय: कालो धाताहं विश्वतोमुख: ॥ ३३ ॥ | | अनुवाद | | अक्षरों में मैं अकार हूं, और समासों में मैं द्वंद्व समास हूं। मैं अनंत समय भी हूं और रचने वालों में मैं ब्रह्मा हूं। | |
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