श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 10: श्रीभगवान् का ऐश्वर्य  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  10.3 
 
 
यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् ।
असम्मूढ: स मर्त्येषु सर्वपापै: प्रमुच्यते ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  जो मुझे जन्मरहित, अनादि, समस्त लोकों के स्वामी के रूप में जानता है, मनुष्यों में केवल वही मोह से रहित और समस्त पापों से मुक्त होता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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