श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 1: युद्धस्थल परीक्षण एवं अर्जुन विषाद योग  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  1.36 
 
 
पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिनः ।
तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्सबान्धवान् ।
स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव ॥ ३६ ॥
 
अनुवाद
 
  यदि हम ऐसे शत्रुओं का वध करते हैं तो हमें पाप लगेगा, इसलिए यह उचित नहीं होगा कि हम धृतराष्ट्र के पुत्रों और उनके मित्रों की हत्या करें। हे लक्ष्मीपति कृष्ण! इससे हमें क्या लाभ होगा? और अपने ही कुटुम्बियों को मारकर हम किस प्रकार सुखी हो सकते हैं?
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.